शुक्रवार, 17 सितंबर 2010 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

मन की बुझी न प्यास ..!!


मन की बुझी ना प्यास तेरे दीदार की
मन का था भ्रम या हद थी प्यार की

क्यूँ नहीं समझता ये दिल अपनी हदों कों
किया सब जो थी मेरी कूवत अख्तियार की।

जिद में क्यूँ कर बैठा तू ऐसी खता
कर दी बदनामी खुद ही अपने प्यार की

सुर्खरू हो जाता है तन-मन तुझे देख कर
सुध-बुध नही रही इसे अब संसार की

हर
तमन्ना में बस तमन्ना है तेरे दीद की
कयामत की हद बना रखी है इंतजार की

जमाना चाहे जितने कांटे बिछा दे राहों में
कमलेश 'जीत आखिर होगी मेरे प्यार की ॥