जेल में पढ़े जो चेहरों के भाव ...!!!
हसरतों को जहाँ रोज, मरते-बेहाल देखा है ,
बे-मतलब अपना चेहरा, लाल करते देखा है ।
जो करके आये हैं , उसका उनको ख्याल है,
मै तो था बे-कसूर .!ये मलाल करते देखा है ।
करें भी क्या इनके बस में, है भी नही ,
यादों के नश्तरों को, हलाल करते देखा है ,।
कुछ ने तो कर लिया वक्त से समझौता ,
कुछ बिना वजह हमेशा बवाल करते देखा है ।
जो नही दे पाते अपने आप को उत्तर ,
उसे औरों से सौ सवाल ? करते देखा है ।
''कमलेश'' यहाँ की दुनिया बड़ी अजीब है ,
कुछ को रोते हुए ,कुछ को धमाल करते देखा है ॥
{सेंट्रल जेल में ड्यूटी के दौरान लिखे थे यह शब्द ''कैदियों की मानसिकता ''}
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5 comments:
रचना में अनुभव के मोतियों को करीने से सजाया गया है!
जो नही दे पाते अपने आप को उत्तर ,
उसे औरों से सौ सवाल ? करते देखा है ।
यही सच है, यही विडम्बना है
कैदियों की मानसिकता पर बेहतरीन अभिव्यक्ति. बहुत बढ़िया, कमलेश भाई.
बे-मतलब अपना चेहरा, लाल (समीर चच्चा आउतय होइहंय)
कुछ बिना वजह हमेशा बवाल करते देखा है (अभी बज़ में यही तो देखा है)
कुछ को रोते हुए ,कुछ को धमाल करते देखा है ( हम तो धमाली हैं, रोने का काम तो वामपंथी रुदालियों का है.)
बहुत ही मस्त रचना है. :)
आपकी इस सुन्दर पोस्ट की चर्चा यहाँ भी तो है!
http://charchamanch.blogspot.com/2010/04/blog-post_19.html
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