रविवार, 18 अप्रैल 2010 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

जेल में पढ़े जो चेहरों के भाव ...!!!


हसरतों को जहाँ रोज, मरते-बेहाल देखा है ,
बे-मतलब अपना चेहरा, लाल करते देखा है

जो करके आये हैं , उसका उनको ख्याल है,
मै तो था बे-कसूर .!ये मलाल करते देखा है

करें भी क्या इनके बस में, है भी नही ,
यादों के नश्तरों को, हलाल करते देखा है ,।

कुछ ने तो कर लिया वक्त से समझौता ,
कुछ बिना वजह हमेशा बवाल करते देखा है

जो नही दे पाते अपने आप को उत्तर ,
उसे औरों से सौ सवाल ? करते देखा है

''कमलेश'' यहाँ की दुनिया बड़ी अजीब है ,
कुछ को रोते हुए ,कुछ को धमाल करते देखा है


{सेंट्रल जेल में ड्यूटी के दौरान लिखे थे यह शब्द ''कैदियों की मानसिकता ''}

5 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

रचना में अनुभव के मोतियों को करीने से सजाया गया है!

M VERMA ने कहा…

जो नही दे पाते अपने आप को उत्तर ,
उसे औरों से सौ सवाल ? करते देखा है ।
यही सच है, यही विडम्बना है

Udan Tashtari ने कहा…

कैदियों की मानसिकता पर बेहतरीन अभिव्यक्ति. बहुत बढ़िया, कमलेश भाई.

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji ने कहा…

बे-मतलब अपना चेहरा, लाल (समीर चच्चा आउतय होइहंय)
कुछ बिना वजह हमेशा बवाल करते देखा है (अभी बज़ में यही तो देखा है)
कुछ को रोते हुए ,कुछ को धमाल करते देखा है ( हम तो धमाली हैं, रोने का काम तो वामपंथी रुदालियों का है.)
बहुत ही मस्त रचना है. :)

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस सुन्दर पोस्ट की चर्चा यहाँ भी तो है!
http://charchamanch.blogspot.com/2010/04/blog-post_19.html