मन प्रफुल्लित हो झूमता ,प्रिय प्रियवर के संग ।
मीठी-मीठी ठंडक, तन को प्यारी लगती है ,
जो धूप तडफती थी ,वो भी प्यारी लगती है ।
भूल गये वो गर्मी के दिन ,जब धरती रही धधकती ,
जिन चिड़ियों की जान फंसी थी ,वो भी फिरे फुदकती ।
हर है सुहावना मौसम ,सवेर लगे बड़ीप्यारी ,
ये फसल कटी अब, अगली की हो गयी तैयारी । इस प्रकृति के अनुपम उपहार को हमें बचाना है ,
'कमलेश' हर तरफ इस धरा को ,विर्क्षों से सजाना है ॥
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