गुरुवार, 7 जनवरी 2010 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

मुझ नाचीज को मिला ये;;!!

मुझ नाचीज को मिला ये, प्यार कैसा है
जो हो मन को ,ऐतबार जैसा है

चाँद गया हो मुट्ठी में ,
हुआ सपना साकार जैसा है

सोचा भी नही था, कभी ऐसा भी होगा
कल्पना
में अब भी सूक्ष्म आकार जैसा है

हकीकत में हुई है,स्नेह की वर्षा ,
मेरे लिये ये प्यार खुमार जैसा है

परिस्करण ,उत्साहवर्धन ले जावूँ आपका साथ में ,
आप लोगों की तरफ से ,उपहार जैसा है

काश रह पाता ''कमलेश'' आपके संग ,
गुनी जनों का सानिध्य पुरस्कार जैसा है

4 comments:

Udan Tashtari ने कहा…

परिस्करण ,उत्साहवर्धन ले जावूँ आपका साथ में ,
आप लोगों की तरफ से ,उपहार जैसा है ॥


-सही है, यही तो उपहार है!! उम्दा!!

वाणी गीत ने कहा…

सपना हुआ साकार ...चाँद आया मुट्ठी में ...
बहुत बधाई ..!!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

काश रह पाता ''कमलेश'' आपके संग ,
गुनी जनों का सानिध्य पुरस्कार जैसा है ॥

बढ़िया रचना वर्मा साहब !

Randhir Singh Suman ने कहा…

मुझ नाचीज को मिला ये, प्यार कैसा है ।
जो न हो मन को ,ऐतबार जैसा है ।
nice