शनिवार, 19 दिसंबर 2009 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

नही लिखना चाहती कलम ...???

नही लिखना चाहती कलम ,उस फसाने को ,
जो नागवार गुजरा जमाने को ।

फकत हमने तो बस कि थी इल्तिजा ,
न पता था लग जायेंगी ,सदियाँ उसे मनाने को ।

कितनी मुश्किलें आयें इस राहेबर में ,
इंतजार कर लेंगे ता -उम्र उसे पाने को ।

चाहे सूली पर चढ़ा दे जमाना ,
न बे राह कर पायें तूफां,इस दीवाने को ।

उसकी खूबसूरती में मुब्तिला ,''कमलेश'' हैं जनाब ,
करता ही नही दिल ,इस दुनिया से जाने को ॥

4 comments:

अजय कुमार झा ने कहा…

वाह वर्मा जी क्या खूबसूरत पंक्तियां लिखी हैं आपका ब्लोग भी बहुत पसंद आया मुझे

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

कितनी मुश्किलें आयें इस राहेबर में ,
इंतजार कर लेंगे ता -उम्र उसे पाने को ।

चाहे सूली पर चढ़ा दे जमाना ,
न बे राह कर पायें तूफां,इस दीवाने को ।
बहुत सुन्दर वर्मा साहब !

M VERMA ने कहा…

कितनी मुश्किलें आयें इस राहेबर में ,
इंतजार कर लेंगे ता -उम्र उसे पाने को ।
उम्र भर के इंतज़ार के बाद भी पाने की तमन्ना
बहुत खूब

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

फकत हमने तो बस कि थी इल्तिजा ,
न पता था लग जायेंगी ,सदियाँ उसे मनाने को ।
--वाह क्या बात है!