नही लिखना चाहती कलम ,उस फसाने को ,
जो नागवार गुजरा जमाने को ।
फकत हमने तो बस कि थी इल्तिजा ,
न पता था लग जायेंगी ,सदियाँ उसे मनाने को ।
कितनी मुश्किलें आयें इस राहेबर में ,
इंतजार कर लेंगे ता -उम्र उसे पाने को ।
चाहे सूली पर चढ़ा दे जमाना ,
न बे राह कर पायें तूफां,इस दीवाने को ।
उसकी खूबसूरती में मुब्तिला ,''कमलेश'' हैं जनाब ,
करता ही नही दिल ,इस दुनिया से जाने को ॥