तुम भी वही निकले ,जिसका गुमान था ,
इक बार फ़िर दिल ने देना इम्तिहान था ॥
पहले भी टूटी थी बिजलियाँ ,इस मुकाम पर ,
उनका गवाह नीचे जमीं ,ऊपर असमान था ।
शक भी जरा सा होता ,तो कुछ सोचते हम ,
पर क्या पता ?पहले से दिल बे -इमान था ।
लुट गया कारवां ,मंजिल से पहले मेरा ,
उसके हाथों लुटा जो ,निगेहबान था ।
''कमलेश'' शायद फ़िर कोई आएगा कहीं ,
जो प्यार का असली कद्रदान था ॥
3 comments:
लुट गया कारवां ,मंजिल से पहले मेरा ,
उसके हाथों लुटा जो ,निगेहबान था ।
बहुत ही खूबसूरत भाव, विरोधाभाषी तेवर और यथार्थपरक रचना
तुम भी वही निकले ,जिसका गुमान था ,
इक बार फ़िर दिल ने देना इम्तिहान था ॥
पहले भी टूटी थी बिजलियाँ ,इस मुकाम पर ,
उनका गवाह नीचे जमीं ,ऊपर असमान था ।
LAJWAAB
nice
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