जो जीते थे मेरे लिये वो ,अजनबी कैसे हो गये ,
बड़ी जतन से संजोये रिश्ते ,ये कैसे ऐसे हो गये ।
न आवाज आयी टूटने की ,न लगा कुछ है गिरा,
फिर ये दिलों के टुकड़े तार-तार कैसे हो गये ।
शिकवों की सिसकियाँ थी ,सुनी शायद किसी ने ,
उन छलकती आँखों के आंसू ,इतने बे-जार कैसे हो गये।
कुछ तो है दिलों में इक दूसरे के ,जो जीने नही देता ,
अब जीने-मरने के जाने ये इकरार कैसे .ऐसे हो गये ।
जालिम कह कर वो भी वैसे हो गये,की हमें क्या ?,
''कमलेश '' कातिल थे वो फरिश्ते कैसे -ऐसे हो गये ॥