जाने कब जिंदगी को ,'वक्त' क्या मोड़ दे ,
ना जाने कौन सी दिशा ,कौन ?सा कोण दे।
' क्या पता 'वक्त' कब ,फर्श से अर्श पर जोड़ दे ,
चढ़ा दे 'पतंग' किस्मत की ,या हवा में छोड़ दे।
हो वक्त की रहमत तो, सब कुछ है मुमकिन !
चाहे सहरा में 'वक्त' ,दरियाओ के रुख मोड़ दे.
जो ' वक्त'के नवाजे बैठे हैं, तरक्की की नाव पर,
पता नहीं कब 'वक्त' ,उनका मश्तूल तोड़ दे।
'कमलेश' वक्त ने खिलाये हैं, सहरा में भी चमन ,
कर बुलंद तू वक्त अपना ,जो वक्त को भी झिंझोड़ दे ।। जाने कब जिंदगी ....?
ना जाने कौन सी दिशा ,कौन ?सा कोण दे।
' क्या पता 'वक्त' कब ,फर्श से अर्श पर जोड़ दे ,
चढ़ा दे 'पतंग' किस्मत की ,या हवा में छोड़ दे।
हो वक्त की रहमत तो, सब कुछ है मुमकिन !
चाहे सहरा में 'वक्त' ,दरियाओ के रुख मोड़ दे.
जो ' वक्त'के नवाजे बैठे हैं, तरक्की की नाव पर,
पता नहीं कब 'वक्त' ,उनका मश्तूल तोड़ दे।
'कमलेश' वक्त ने खिलाये हैं, सहरा में भी चमन ,
कर बुलंद तू वक्त अपना ,जो वक्त को भी झिंझोड़ दे ।। जाने कब जिंदगी ....?
5 comments:
har sher khubsura dad ki kavil....
बेहतरीन ग़ज़ल....
बहुत खूब!!
सादर
अनु
बहुत बढ़िया ब्लॉग डिजाईन है आपका .ब्लॉग में फ़ोन नो. छोड़ियेगा. आपसे इस विषय पर बात करेंगे.
डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
lateast post मैं कौन हूँ ?
latest post परम्परा
बहुत ही बेहतरीन उम्दा प्रस्तुति.
हो वक्त की रहमत तो, सब कुछ है मुमकिन !
चाहे सहरा में 'वक्त' ,दरियाओ के रुख मोड़ दे.
वाह ... बेहतरीन
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