विश्वास की इन टूटती डालियों को ,
कोई तो उठ के सहारा दे दो ,
छोडो ना इनको भाग्य के भरोसे ,
बस साथ होने का इशारा दे दो ,
पहुँच कर रहेंगे ये अपनी मंजिल तलक ,
पूरी राह नही ,बस चलने को किनारा दे दो ,
ये भर कर रहेंगे दिलों में उजालों की बिजलियाँ ,
बस इनको विश्वास का इक शरारा दे दो ,
जुल्म की सत्ता हटाने की हमको नही जरूरत ,
बस शान से जीने का हक हमारा दे दो ,
तन मन धन से हम हैं इनके साथ सब ,
बस 'कमलेश , इस अहसास का हुलारा दे दो ॥
2 comments:
बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी है आपने!
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आज पूरे 36 घंटे बाद ब्लॉग पर आया हूँ!
धीरे-धीरे सब जगह पहुँच जाऊँगा!
sunder gazal...
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