मन में उठती हलचलों की, परवाह क्यूँ नही ,
हों ये कभी ये शांत, इसकी चाह क्यूँ नही ?
माहौल बन रहा है, हर तरफ बेचैनी का ,
फिर भी किसी दिल में, कोई अफवाह क्यूँ नही ?
इन ह्वावों की नीयत में ,कुछ तो खोट है ,
वफादारी फिर भी बदलने की, चाह क्यूँ नही ?
अभी तो मुमकिन है ! देख लो हर तरफ ,
खुद गौर से देखते ,कोई राह क्यूँ नही ?
इन दुश्वारियों को, कोई क्या समझे मेरी ,
हैरान है जमाना ! निकली कोई आह क्यूँ नही ?
दावे तो बहुत थे ,साथ है ज़माना तेरे ,
ये !'कमलेश 'तेरे साथ कोई , हमराह क्यूँ नही ??
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