वही हुआ विश्वासघात जिसका सबको अनदेसा था ,
था प्रारम्भ में मिल गया ,उनका कुटिल संदेशा था ॥
आश्वासनों के दम पर ये वर्षों कितने खेल गए ,
आज़ादी ,जनता ,नैतिक मूल्य लगाने तेल गए ॥
कोई[नेता] नही चाहेगा की जनता मुझे सवाल करे ,
क्यों? कसाई चाहेगा की ''बकरा'' उसे हलाल करे ,
एक दिन भीख मांगने से ,पांच वर्षों का ताज मिले ,
जिनके बस एक इशारे से ''राम लीला मैदान ''हिले ,
जब इतनी ताकत सत्ता की, हो जिनके हाथों में ,
क्या मुश्किल था निकालना वक्त बे-मतलब की बातों में ,
इनको याद आ रहा है अब बाबा राम देव का अनशन ,
उसी तर्ज़ पर ये शायद लिखा जा रहा है ''राज-प्रहसन'',
पता नहीं अब ''अन्ना''के अनशन का क्या हश्र होगा ,
कौरवों पर होगी विजय ''अन्ना - अभिमन्यु पर फख्र होगा ,
कमलेश' गर अपमानित कर पालें ,विजय की भ्रान्ति होगी ,
अन्ना' तुम बढे चलो अब इस देश में विकट क्रांति होगी ॥
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें