आज तक ....!!! नही मिली ..
आज तक वो नही मिली ,जिसकी दरकार थी ,
झूठी निकली मेरी तमन्ना ,पीड़ मिली हार बार थी ॥
तिनका -तिनका जोड़ परिंदों ने, घर अपना बना लिया ,
ना मिला कोई मेरे घर को,वैसे इनकी भरमार थी ॥
जब तक उसने मुड कर देखा ,तब तक हम दूर थे ,
मुड कर उन तक जा ना सके ,पैर बहुत मजबूर थे ॥
जिसको लेकर वो उलझे थे ,उनकी ग़लतफ़हमी थी ,
जिसे वो जीत समझे थे , वास्तव में उनकी हार थी ॥
''कमलेश''इन उल्फतों को क्या नाम देंगे आप सब ,
जिसे आप समझ बैठे ''हाँ ''वह उनकी इंकार थी !!
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6 comments:
''कमलेश''इन उल्फतों को क्या नाम देंगे आप सब ,
जिसे आप समझ बैठे ''हाँ ''वह उनकी इंकार थी !!
वाह वाह वाह बेहतरीन
waah bahut khoob...
कविता मन मोहती है....सरल भाव दिल पर अपना असर छोड़ते हैं...
बहुत सुंदर !
कविता को एक नए अंदाज़ में परिभाषित किया है आप ने !
बहुत सुंदर ग़ज़ल... हमेशा की तरह लाजवाब....
सुन्दर रचना!
इसकी तो चर्चा "चर्चा मंच" में भी है!
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