गुरुवार, 15 अप्रैल 2010 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

मन का अन्तर्द्वन्ध..किसी कोने से ...!!!

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मेरा तन- मन उचाट क्यूँ है? इस पूरे जहान से ,
चिड़ियों ने भी समेट लिये , घोंसले मेरे मकान से ।!

इंसानों में खुदगर्जी ,इस कदर हावी हो गयी ,
पत्थर भी कहने लगे ,हम अच्छे है इस इन्सान से ।!

फिजां की सरसराती इन हवावों में ,बू है साजिश की
,
इनकी दोस्ती से कहीं अच्छी , है! दुश्मनी तूफ़ान से
।!

कितना भी अफ़सोस कर लो, इस जमाने की नीयत पर ,
कितने बेगुनाहों को गुजारा है ,इसने अपने इम्तिहान से ।!

'
कमलेश 'अब भी बहुत कुछ है बाकी यहाँ कहने को
पहले संवारो इस धरा को ,फिर शिकवा करो आसमान से ।!!

9 comments:

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

कितना भी अफ़सोस कर लो, इस जमाने नीयत पर ,
कितने बेगुनाहों को गुजारा है ,इसने अपने इम्तिहान से ।!

बहुत खूब.... बेहतरीन अभिव्यक्ति के साथ इन पंक्तियों ने दिल को छू लिया....

M VERMA ने कहा…

चिड़ियों ने भी समेट लिये , घोंसले मेरे मकान से ।
मन तो उचाट होगा ही पर हम फितरतों से बाज कब आते हैं
बेहतरीन रचना

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत ही सटीक रचना है!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

इंसानों में खुदगर्जी हो गयी ,इस कदर हावी ,
जड़ भी कहने लगे ,हम अच्छे है इस इन्सान से ।!

सटीक रचना....बहुत बढ़िया ..

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत खूब अच्छी लगी आपकी रचना बधाई

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी रचना की चर्चा यहाँ भी की गई है-

http://charchamanch.blogspot.com/2010/04/blog-post_6838.html

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

बहुत सुन्दर ग़ज़ल है ! खास कर ये शेर बहुत अच्छा लगा ....

फिजां की इन सरसराती हवावों में है ,बू साजिश की,
इनकी दोस्ती से है कहीं अच्छी ,दुश्मनी तूफ़ान से ।!

कविता रावत ने कहा…

इंसानों में खुदगर्जी हो गयी ,इस कदर हावी ,
जड़ भी कहने लगे ,हम अच्छे है इस इन्सान से ।!
....insaanon kee badalti fidrat kuch esi tarah ho gayee hai...
कितना भी अफ़सोस कर लो, इस जमाने नीयत पर ,
कितने बेगुनाहों को गुजारा है ,इसने अपने इम्तिहान से ।!
.....sarafat se jeene walon ka sabhi इम्तिहान leten hain... aaj ki yahi bidambana hai...
Bahut achhi rachna...

kavita verma ने कहा…

bahut achchhi rachana hai badhai.