अपने ही देश में बेगाने हो गये हैं ,
यहाँ के लोग रुपय्या हम आने हो गए हैं ,
जिनकी मेहनत से है इनकी मूछ ऊँची ,वही
इनकी नजरों में बेमाने हो गए हैं ,
इन्सान ही इन्सान को कमतर है आंकता ,
इनके औरों के लिए अलग पैमाने हो गए हैं ,
साथ-२ होने का जो दम भरते ,,
सबसे अधिक भेदभाव यही करते ,
कसूर है उन सरकारों का,
जो नही रख पाती ख्याल बे-रोजगारों का ॥
क्षेत्र वाद के मारे ये अंधे हो गये हैं ,
जिनकी थी भी दो आँखें,
,''कमलेश ''वो भी काने हो गए हैं ॥
4 comments:
वाह क्या बात है /खरी खरी /बधाई!
अपना देश है तभी तो दर्द है
भाई वाह क्या बात है, सच्चाई को उकेरति लाजवाब रचना।
बहुत लाजबाब!!
अपने ही देश में बेगाने हो गये हैं ,
यहाँ के लोग रुपय्या हम आने हो गए हैं.
-वाह!
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एड की डिटेल भेजिये. आपने ध्यान रखा, अनुग्रहित हूँ. sameer.lal AT gmail.com पर बताईयेगा.
आभार
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