असहाय,असहज,
पाता क्यूं हूँ ?
इस व्यवस्था के चक्रव्यहू में,
प्रयत्नशील हूँ,
इस से निकल जावूँ
,पर विफल हो,
किनारे पाता हूँ ।
मन में बस हैं द्वन्द्ध ,
क्यों कर ,न कर पाया
,विरोध कुतर्कों का ।
अभिमन्यु का कत्ल ?
करेंगे पांडव क्या ?
सत्ता और व्यवस्था में
,है सर्वत्र कौरव ही।
काल स्वरूप पांडव
,परिवर्तन से नही बचे
। कुतर्क बोधहो
,गया है आज के
अर्जुन को । । ।
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