तेरी उल्फत के बिना जीना मंजूर नही ,
ना ही मेरी फितरत, ना है दस्तूर कहीं ।
धडकनें पूछती हर साँस लेने पर मुझसे ,
किसी के पास वो गिरवीं तो नही हैं कहीं ,
हो न मय्यसर उनको ये जहाँ हो या वो जहाँ ,
जो तोड़ते हो दिल किसी का यहाँ या कहीं ,
आती जाती हवावों को भी देख लेते है ये
इतना भी नहीं उतरा तुम्हारा सरूर नहीं ,
चाहत की मजबूरियां नही मेरी इबादत थी ,
तुमपे हक़ जताना हक़ था मेरा गरूर नहीं ,
'कमलेश 'बिछी हैं नजर की चादर तेरी राहों में ,
निकलेगी उम्मीदों की किरन जरूर यहीं से कहीं ॥
1 comments:
धडकनें पूछती हर साँस लेने पर मुझसे ,
किसी के पास वो गिरवीं तो नही हैं कहीं ,
Bahut Sunder
एक टिप्पणी भेजें