जब भी हुआ इशारा ...!!!
जब भी हुआ इशारा, उस परवर -दिगार का ,
बरसीं रहमतें आसमां से ,झरना बहा प्यार का ॥
उसकी रज़ा से दिए आँधियों में जलते हैं ...
हो ना रजा तो मजाल आ जाये झोंका 'बयार का '' ॥
ये चमकती शबनम चहकती बुलबुल ,है उसी का नज़ारा ...
उसके इशारे से पत्थरों में , चहक रहा दरख्त चिनार का ॥
समंदर भी सूख जाये जब वो चाहे तब ......../
नहीं संभल पाता इन्सान बोझ अपने दरो-दीवार का ''॥
कमलेश ''वो ही जाने उसकी कायनात का जलवा ,
बस बनी रहे इनायत है सपना इस खाकसार का ''॥
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2 comments:
सुन्दर रचना!
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इशारे जो समझ जाए उसे इन्सान कहते हैं!
खूबसूरत रचना
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