कितना दिल लगाने से पहले...!!!
कितना दिल लगाने से पहले, इत्मिनान किया मैंने ,
सच्ची है मुहब्बत 'का' फिर भी इम्तहान दिया मैंने ॥
कहने को तो मुहब्बत करना, गुनाह है इस जहाँ में ,
फिर भी करके मुहब्बत ,किया सबको हैरान मैंने ॥
हमारे इश्क की चर्चा है, शहर के ह़र मोड़ पर ,
इस तरह सारे शहर को, किया परेशान मैंने ॥
न छूटे दिल की लगी ,तेरी दिल-लगी में कहीं ,
कितना तेरे लिये दिल ,लगाना किया आशां मैंने ॥
तुझसे माँगा न कभी, तेरी चाहत के सिवा ,
तेरी चाहत की राहों में , सब किया कुर्बान मैंने ॥
न कभी तेरे जज्बात फिसले ना, फिसला दिल तेरा ,
इसी जज्बे का ''कमलेश '' अहसान खुद लिया मैंने ॥
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3 comments:
बहुत सुन्दर रचना।
मुहब्बत के जज्बे को सलाम. धन्यवाद कमलेश भाई.
बढ़िया रचना |
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