गुरुवार, 22 अप्रैल 2010 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

जलन -यह -कैसी -जलन ..!!!

  • थी चांदनी तारों के आगोश में ,देख!चाँद जल गया !
  • जलन भी थी इतनी तेज, सूरज भी पिघल गया !

  • तपिस तेरे मेरे प्यार की, पहुंच गयी कूंचों तक !
  • बारास्ता जो भी गुजरा इधर से ,वो भी मचल गया !

  • ऐसा नही की विरानियाँ ही हैं, इस राहे-गुजर में ,
  • जो भी आया दर--इश्क में ,गाता ग़ज़ल गया !

  • यहाँ इतनी आसां नही होती ,राहें चाहत की ,
  • कुछ तो सीधे चलते चले गये ,कोई फिसल गया !

  • 'कमलेश'शुक्रिया कैसे अदा करुँ मै उसका ,
  • जिसके प्यार के सहारे ,आखिर सम्भल गया !!



8 comments:

समयचक्र ने कहा…

बहुत सुन्दर वाह

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

हर बार की तरह ....बहुत सुंदर ग़ज़ल...

M VERMA ने कहा…

यहाँ इतनी आसां नही होती ,राहें चाहत की ,
कुछ तो सीधे चलते चले गये ,कोई फिसल गया !

जो फिसल गये वे भी कहाँ संभलते हैं
सुन्दर रचना

vandana gupta ने कहा…

वाह बहुत ही सुन्दर गज़ल्।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

थी चांदनी तारों के आगोश में ,देख!चाँद जल गया !
जलन भी थी इतनी तेज, सूरज भी पिघल गया !

बहुत खूब....बढ़िया गज़ल...

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत सुन्दर गजल है।बधाई।

Kulwant Happy ने कहा…

अद्भुत लिखा है कमलेश वर्मा जी।

संजय भास्‍कर ने कहा…

आपने बड़े ख़ूबसूरत ख़यालों से सजा कर एक निहायत उम्दा ग़ज़ल लिखी है।