इस दुनिया के हर दरख्त से कभी घनी '' छाँ'' नही होती ,
दुनिया में कभी कोई और ,अपनी जैसी ''माँ''नही होती.
कहने को दुनियावी रिश्तों के, अम्बार लगे हैं होते ,
पर उनमे कहीं ममतामयी ,अपनी ''माँ'' नही होती .
रिश्तों को पिरोने का धागा ,और प्यार के मोती ,
न बनती ये रिश्तो की माला जो ''माँ'' नही होती .
तेरे जाने के बाद कैसे बिखर ,जायेगा तेरा उपवन ,
अच्छा है ! नही तू देख -देख ''माँ''बहुत रोती .
हर तरफ़ रिश्तों का जनाज़ा ,माँ निकल रहा है ,
कब तक तुम अपने ''कंधों पर इस लाश को ढोती .
आखरी वक्त ''तोड़'' दिए तार, रिश्तों के जमाने ने ,
'कमलेश' 'माँ' न टूटती गर , सारे तार जोड़ लेती ....काश !!.....!!!!
दुनिया में कभी कोई और ,अपनी जैसी ''माँ''नही होती.
कहने को दुनियावी रिश्तों के, अम्बार लगे हैं होते ,
पर उनमे कहीं ममतामयी ,अपनी ''माँ'' नही होती .
रिश्तों को पिरोने का धागा ,और प्यार के मोती ,
न बनती ये रिश्तो की माला जो ''माँ'' नही होती .
तेरे जाने के बाद कैसे बिखर ,जायेगा तेरा उपवन ,
अच्छा है ! नही तू देख -देख ''माँ''बहुत रोती .
हर तरफ़ रिश्तों का जनाज़ा ,माँ निकल रहा है ,
कब तक तुम अपने ''कंधों पर इस लाश को ढोती .
आखरी वक्त ''तोड़'' दिए तार, रिश्तों के जमाने ने ,
'कमलेश' 'माँ' न टूटती गर , सारे तार जोड़ लेती ....काश !!.....!!!!
1 comments:
Marmsparshi Panktiyan
एक टिप्पणी भेजें