खुदगर्ज़ ज़माने की जब , वो सुनी दास्ताँ ,
वह खुद को ही लगी , ये अपनी ही दास्ताँ .....
बेदर्दी से तोड़े डाले किस्मत, ने सपने मेरे ,
वक्त के साथ शामिल थे,खुद इसमें अपने मेरे .
उन भावों को दी जुबां ,हमने अपने अंदाज़ में ,
वो सुन सकें न था इतना, दम मेरी आवाज़ में .
हर दम रहा मन तडफता, अपने अपनों के लिए ,
पूरी जिंदगी लग गयी, जिनके अधूरे सपनों के लिए .
बिना कसूर कत्ल कर दो ,ये कोई इन्साफ नही है ,
फिर क्यूँ मिले सज़ा ,जिसका कोई हिसाब नही है .
उपवन की बेलों ने सहारे को, खुद ही खा लिया ,
पर रहीं रीती की रीती समझी, सब कुछ पा लिया .
अरे ''कमलेश''कौन समझाये, इन भ्रष्ट -मती बन्दों को ,
जिनको हो आदत बोझों की ,सहारे की ज़रुरत क्या कंधों को ..........}{
वह खुद को ही लगी , ये अपनी ही दास्ताँ .....
बेदर्दी से तोड़े डाले किस्मत, ने सपने मेरे ,
वक्त के साथ शामिल थे,खुद इसमें अपने मेरे .
उन भावों को दी जुबां ,हमने अपने अंदाज़ में ,
वो सुन सकें न था इतना, दम मेरी आवाज़ में .
हर दम रहा मन तडफता, अपने अपनों के लिए ,
पूरी जिंदगी लग गयी, जिनके अधूरे सपनों के लिए .
बिना कसूर कत्ल कर दो ,ये कोई इन्साफ नही है ,
फिर क्यूँ मिले सज़ा ,जिसका कोई हिसाब नही है .
उपवन की बेलों ने सहारे को, खुद ही खा लिया ,
पर रहीं रीती की रीती समझी, सब कुछ पा लिया .
अरे ''कमलेश''कौन समझाये, इन भ्रष्ट -मती बन्दों को ,
जिनको हो आदत बोझों की ,सहारे की ज़रुरत क्या कंधों को ..........}{
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