नवागन्तुक की परिकल्पना के सन्दर्भ से ....!!!
कोई आने वाला है मेहमान कहीं पे ,
आहट कदमों की है महसूस हो रही जमीं पे ।
कैसा होगा मंजर आमद पर उसकी ,
गूंज उठेंगी दरो-दीवार उसकी हंसी पे ।
नैन- ओ-नक्श तो खुदा की नियामत है ,
लयाकत शक्ले-सीरत से दिखती वहीं पे ।
उम्मीदों में उसने भी बनाया होगा 'ताज महल ',
खरी उतरेगी चांदनी चाँद की उसकी ज़मीं पे ।
तोड़ कर 'फूल'को रख तो लिया है हाथ में ,
'कमलेश'नाज़ुक है कुम्हला ना जाये कहीं पे ॥
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3 comments:
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!यदि किसी ब्लॉग की कोई पोस्ट चर्चा मे ली गई होती है तो ब्लॉगव्यवस्थापक का यह नैतिक कर्तव्य होता है कि वह उसकी सूचना सम्बन्धित ब्लॉग के स्वामी को दे दें!
अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
खुबसूरत खयालात... अच्छी ग़ज़ल...
सादर बधाई...
कोमल भावो का सुन्दर चित्रण किया है।
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