देखो !कैसे राजनीतिक बगुलों ने ....
देखो ! कैसे राजनीतिक बगुलों ने, तन उघार दिए ,
दो-मुहे सापों ने नकली मुखौटे , [केंचुलें ]उतार दिए ,
इतना बड़ा धोखा इस देश में ,
फिरते हैं शिखंडी मंत्रियों के वेश में ,
आम आदमी की खिल्ली, उड़ा रहें हैं ये ,
विशिष्ट गधों को बिरयानी खिला रहें हैं ये ,
तभी तक आम जन , इनके लिये खास था ,
जब ''कोई'' बैठा करने इनके विरुद्ध उपवास था ,
देखा ?हाय !ये तो क्या अजब हो गया ,
मानने -मनाने में ये तो गजब हो गया ,
कहाँ हम[सरकार] आ गए इन छुट -भइयों की बातों में ,
इनकी शक्लें दिखनी लगी उनको {भ्रष्टाचारियों }रातों में ,
असली चेहरा दिख ही गया , सत्ता के मद-मतवालों का ,
कोरा जवाब मिल गया देश को ,छद्म जन-तन्त्र रखवालों का ,
'कमलेश' क्या असहाय है जनतंत्र ,राज-तन्त्र सब पर भारी है ,
सब मिल कर दें इनको जवाब ,हम सब की अब बारी है ॥
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1 comments:
बहुत बढ़िया रचना!
सभी अशआर बहुत खूबसूरत हैं!
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