सोमवार, 3 मई 2010 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

अधूरी ...!!!



प्यार की अभिव्क्ति
साधन मौन मन
से
इच्छाओं की तरंग

पल-पल चलती

जाती गन्तव्य की

ओर

दम तोड़ जाती वहीं

नही मिलता सामजस्य

उस अनुभूति का

जो थी इधर इस

किनारे पर तरंग के

रूप में

कठिन था मुड़ना

भंवर में साँस

टूटी

गुजरती रही अनजानी

अनदेखी लहरें

हस्र यही होना

था

अनजान राहों में

' कमलेश' की तमन्नाओं

का ....!!!

4 comments:

दिलीप ने कहा…

bahut khoob...

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

आपकी ग़ज़ल हमेशा दिल को छू जातीं हैं....

M VERMA ने कहा…

भंवर में साँस
टूटी
गुजरती रही अनजानी
अनदेखी लहरें
भंवर में साँस टूटने पर यही होगा, टूटने न दें
बहुत सुन्दर रचना

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

खूबसूरत नज़्म....मन को अभिव्यक्त करती हुई