देखो जमाने का क्या ? मिजाज़ हो गया ,
'सही' के लिए लेना रिश्वत रिवाज़ हो गया ।
देखो सच्चाई सरे आम बे-पर्दा हो गयी ,
झूठ ,फरेब ,मक्कारी का हिजाब हो गया ।
रंग बदलते लोग यहाँ गिरगिट की तरह ,
उनकी आदत में सफ़ेद-झूठ खिजाब हो गया ।
गये कातिल की शिकायत ले मुंसिफ के पास ,
बाहर आये ,मुस्कराए कहा 'हिसाब हो गया ।
जिन्दगी भर पलकों पर रखने की खाई थी कसम ,
झपकी पलकें 'और' किसी का इन्तखाब हो गया ।
तुमसे है मुहब्बत न की तेरे जिस्म से ,
पैमाने बदले पसंद हुस्ने-शबाब हो गया ।
'कमलेश' कातिल को यहाँ क्या ?मिलेगी सजा ,
जो अब तक हमदर्द था ,उनका हमराज हो गया ॥
2 comments:
तुमसे है मुहब्बत न की तेरे जिस्म से ,
पैमाने बदले पसंद हुस्ने-शबाब हो गया ।
-वाह जी, यह भी खूब रही!!
रंग बदलते लोग यहाँ गिरगिट की तरह ,
उनकी आदत में सफ़ेद-झूठ खिजाब हो गया ।nice
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