नही लिखना चाहती कलम ,उस फसाने को ,
जो नागवार गुजरा जमाने को ।
फकत हमने तो बस कि थी इल्तिजा ,
न पता था लग जायेंगी ,सदियाँ उसे मनाने को ।
कितनी मुश्किलें आयें इस राहेबर में ,
इंतजार कर लेंगे ता -उम्र उसे पाने को ।
चाहे सूली पर चढ़ा दे जमाना ,
न बे राह कर पायें तूफां,इस दीवाने को ।
उसकी खूबसूरती में मुब्तिला ,''कमलेश'' हैं जनाब ,
करता ही नही दिल ,इस दुनिया से जाने को ॥
4 comments:
वाह वर्मा जी क्या खूबसूरत पंक्तियां लिखी हैं आपका ब्लोग भी बहुत पसंद आया मुझे
कितनी मुश्किलें आयें इस राहेबर में ,
इंतजार कर लेंगे ता -उम्र उसे पाने को ।
चाहे सूली पर चढ़ा दे जमाना ,
न बे राह कर पायें तूफां,इस दीवाने को ।
बहुत सुन्दर वर्मा साहब !
कितनी मुश्किलें आयें इस राहेबर में ,
इंतजार कर लेंगे ता -उम्र उसे पाने को ।
उम्र भर के इंतज़ार के बाद भी पाने की तमन्ना
बहुत खूब
फकत हमने तो बस कि थी इल्तिजा ,
न पता था लग जायेंगी ,सदियाँ उसे मनाने को ।
--वाह क्या बात है!
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