तुम झांको मेरी आँखों में ,जरा करीब से ,
न नापो अरमानों को ज़माने की ज़रीब से ।
''कभी न मिले दो दिल '',
ये तो ज़माने की फितरत है ,
तुम तो मिल जाओ ,अब
जब मिले हो नसीब से ।
इल्जाम देना तो, जमाने का काम है ,
प्यार करना भी तो सीखा है ,
अपनी ही तहजीब से ।
तूफ़ान बरपा हो गया ,
ज़माने की गलियों में ,
हमने कदम निकाले भी ,
नही थे ,दहलीज से ।
''कमलेश'' गुनाह पूछा भी नही ,
कत्ल कर दिया ,
खुदा इनको बचा ले ,
इस गुनाहे अज़ीम से ॥
4 comments:
तूफ़ान बरपा हो गया ,
ज़माने की गलियों में ,
हमने कदम निकाले भी ,
नही थे ,दहलीज से
वाह लाजवाब
कमलेश जी, बहुत सुंदर गजल कही है आपने। बधाई।
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भीड़ है कयामत की, फिरभी हम अकेले हैं।
इस चर्चित पेन्टिंग को तो पहचानते ही होंगे?
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