रहना था तेरे शहर में ,
इरादे बदल गये । .
मुझ पर ये इल्जाम क्यूँ ?,
तेरे वादे बदल गये ।
जिन्दगी गुजरने की ख्वाहिस ,
दिल में थी मेरे ,
साथ- साथ चले थे ये क्या ?रस्ते बदल गये ।
ढूढेंगे जिन्दगी को जाके कहीं और ,
निशां तो अभी बाकी है ,
गर कारवां उजड़ गये ,।
कमलेश कैसे यकीं हो तेरी बात पर ,
जहाँ शहंशाह बदला नही ,प्यादे बदल गये ॥
2 comments:
बहुत खूब, सुन्दर रचना।
कमलेश जी
सादर वन्दे!
हम भी कुछ कहना चाहते थे
लेकिन संभल गए ........
सुन्दर रचना , बधाई
रत्नेश त्रिपाठी
एक टिप्पणी भेजें