उल्फ़त में तेरी कोई ,भी सज़ा क़बूल है।
बे वजह ही सही कोई ,भी वज़ह क़बूल है।
ना शिकवा कोई तुमसे ,ना माथे पर कोई शिकन,
शिद्दत से निभाना दोस्ती, अपना उसूल है।
जब हमने तुमको अपना, जहां समझ लिया,
फिर चाहत में शक़ के कांटे, ढूंढना फ़िज़ूल है।
बिजलियाँ ज़माने की, हम पर गिरती रहीं मगर,
महफूज़ रहा फिर भी ,हमारी मुहब्बत
का मस्तूळ है।
तूफानों से लड़कर हम किनारा पा ही जायेंगे,
नाज़ुक नहीं है इतना ,प्यार का खिला सहरा में फूल है।
कमलेश' है ख़ास ही मुहब्बत इस ज़िन्दगी से,
पर हमको तेरी खातिर ,हर सज़ा क़बूल है।।
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