लगा दो आग इस गुलशन में
नही जिसकी तुमको ज़रूरत है।
शोलों की तपिश में देख ले
दुनिया
असल में क्या हकीकत है।।
ना कोई भाई चारा है आपस में
ना कोई भी नाता है ।।
हम हम की बू से भरा कचरा
हर तरफ नज़र आता है।।
कल तक जो हमराज़ हमसाया
बन कर बैठे थे।
लोग सबसे पूछते हैं आज
इनके आपस में कैसे रिश्ते थे।।
बस ज़रा सी बात को
अहम का सवाल बना डाला।।
जो बाग़ था एकता का
उसको जला डाला ।।
तो मिल कर फूक दो
अपनी विरासत बाप दादों की।
रहेंगे मिलकर हमेशा किये
उनके वादों की।।
सब एक जैसे हैं
कोई नहीं कुछ कम है।
कमलेश"नही ये सब झूठे हैं
इस ही बात का गम है।।
(हिन्दू मुस्लिम वैमनस्य से आहत।)
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