हम दिलजलों पर ,मत हंसों यारों,
कभी तो तुम्हारा भी ,दिल जला होगा।
ऐसे ही नहीं कोई बन जाता ,कवि और शायर,
इस दिल को ज़रूर, किसी ने छला होगा।
कितना भी बच कर चले ,हम ज़माने से,
कोई ना कोई इल्ज़ाम ,तो मिला होगा।
मर मिटे होंगे हम कभी ,मासूम सूरत पर,
जब तिरछी नज़र का ,तीर चला होगा।।
कोई नहीं है मुंसिफ ,हम जैसों के लिये,
सदियों से चलता आया ,ये सिलसिला होगा।
कोई मरहम बता दो इन ज़ख्मों के लिए
'कमलेश'का तो होगा ही ,आपका भी भला होगा।।
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