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शनिवार, 31 मार्च 2018

ना आई सदा...!!

ना आई अब तक सदा ,उस मोड़ से,
जहां हुए थे हम जुदा, सब छोड़ के।

गमे जुदाई है इक  ,ज़हर ज़िन्दगी में,
होता है धीरे धीरे असर,ज़िन्दगी में।

सब कुछ रुक जाएगा, एकदम एक दिन,
साथ छोड़ देगी ,सांसों की हवा एक दिन।

उसके दीदार को ,अपने सच्चे प्यार को,
चाहूं  पाना अपने,खोए वफ़ाए इज़हार को।

मुड़ के इक दिन फिर से ,मेरे हज़ूर आएंगे,
बागे गुलशन ज़िन्दगी के,मेरे महक जाएंगे।

कमलेश'हर पल  होंगी बहारें,हमारी ज़िंदगी में,
हमेशा बरसें प्यार की फुहारें ,तुम्हारी ज़िन्दगी में ।।

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (02-04-2018) को ) "चाँद की ओर निकल" (चर्चा अंक-2928) पर होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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  2. आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 4अप्रैल 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. शानदार रचना...... हार्दिक बधाई ।

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  4. नमस्ते,
    आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
    ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
    गुरूवार 12 अप्रैल 2018 को प्रकाशनार्थ 1000 वें अंक (विशेषांक) में सम्मिलित की गयी है।

    प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
    सधन्यवाद।

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  5. वाह ... लाजवाब शेर हैं ..
    हर शेर खिलता हुआ गुलाब ...

    जवाब देंहटाएं

आपके स्नेहपूर्ण शब्द मेरा मार्ग दर्शन करते हैं..