मिलता हूँ रोज खुद से,पर मुलाकात नही होती।
मिलती हैं नजरों से नजर ,पर बात नही होती ।
बन कर अज़नबी जी रहे हैं ,दोनों बरसों से।
पर चाह कर भी हममे ,कोई बात नही होती।
कभी तो लगता है अनजाने ,हो गये है ये आसमाँ-जमीं,
इन्सान हो गया खुद अपने से ,कितना अज़नबी।
'कमलेश' आज हम सब से मिलेंगे ,ये तो बस ख्याल है।
जब हम खुद से मिलेंगे वो जरूर ,चांदनी रात होगी।।
#Kamlesh Verma
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, जलियाँवाला बाग़ नरसंहार के शहीदों की ९९ वीं बरसी “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (15-04-2017) को "बदला मिजाज मौसम का" (चर्चा अंक-2941) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'