कुछ भी नहीं था दिल में ,इक़रार कर बैठे।
या ख़ुदा किसी अज़नबी से ,प्यार कर बैठे।
उड़ते थे आसमां में ,पंछियों की तरह ,
ता-उम्र प्यार निभाने ,का इक़रार कर बैठे।
दूर तलक ना थी ,दुआ सलाम जिनसे ,
ऐसा क्या हुआ दिल में ,ऐतबार कर बैठे।
जो नज़रें उठी ना क़भी ,किसी अंज़ान की तरफ़ ,
थी क्या कशिश उसमें ,जो जां निशार कर बैठे।
दिलों में छुपा के रखती ,है दुनिया इस अज़ाब को ,
''कमलेश'' क्यूँ फिर तुम खुद ,ही इज़हार कर बैठे।
या ख़ुदा किसी अज़नबी से ,प्यार कर बैठे।
उड़ते थे आसमां में ,पंछियों की तरह ,
ता-उम्र प्यार निभाने ,का इक़रार कर बैठे।
दूर तलक ना थी ,दुआ सलाम जिनसे ,
ऐसा क्या हुआ दिल में ,ऐतबार कर बैठे।
जो नज़रें उठी ना क़भी ,किसी अंज़ान की तरफ़ ,
थी क्या कशिश उसमें ,जो जां निशार कर बैठे।
दिलों में छुपा के रखती ,है दुनिया इस अज़ाब को ,
''कमलेश'' क्यूँ फिर तुम खुद ,ही इज़हार कर बैठे।
1 comments:
उम्दा ग़ज़ल.।
एक टिप्पणी भेजें