चलो काट दो बेड़ियाँ ,जो पड़ी हैं जमाने की ।
करो बुलंद चाहत अपनी ,वक्त से आगे जाने की ।।
मोह्ताज़ियों को बहा दो ,आज गंगा-ज़मुना में
सीख लो अपनी धारा को ,छोर तक बहाने की।।
नही महदूद रख सकता ,तुमको कोई बंधन में
बस हौसला कर लो ,खुद गांठें छुड़ाने की।।
कर ले कोई लाख कोशिस ,तुमको रोकने की
लगा लो पंख हिम्मत के ,समन्दर पार जाने की।।
'कमलेश'
ऐसे नही मानती दुनिया ,लोहा भारत का
फौलादी कलेजे में है तमन्ना , मिट जाने की।।
करो बुलंद चाहत अपनी ,वक्त से आगे जाने की ।।
मोह्ताज़ियों को बहा दो ,आज गंगा-ज़मुना में
सीख लो अपनी धारा को ,छोर तक बहाने की।।
नही महदूद रख सकता ,तुमको कोई बंधन में
बस हौसला कर लो ,खुद गांठें छुड़ाने की।।
कर ले कोई लाख कोशिस ,तुमको रोकने की
लगा लो पंख हिम्मत के ,समन्दर पार जाने की।।
'कमलेश'
ऐसे नही मानती दुनिया ,लोहा भारत का
फौलादी कलेजे में है तमन्ना , मिट जाने की।।
1 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (14-09-2014) को "मास सितम्बर-हिन्दी भाषा की याद" (चर्चा मंच 1736) पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हिन्दी दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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