चल रहा है तू तू मैं मैं का सिलसिला।
इनको उनसे ,उनको इनसे है शिकवा गिला।
तुम्हारी इस बेहूदा
तकरार से
हम मजबूर मज़दूरों को
क्या मिला।
जो करना है वो
सही जल्दी करो
हौसले से भरा हाथ
सर पर धरो।
राजनीति की रोटियां
सेंक लेना
मौके कल भी बहुत आएंगे,
इस वक़्त दो बस
बुझा चूल्हा जला।
घर से बेघर हुए
अपने घर के लिए,
बचाने को घर में थे
जो जलते दिए।
हम ही हैं आज
जिनको कहते हो काफ़िला।
पता है ये दुःख भी
कट जाएगा
पर ये जीवन दो
भागों में बंट जाएगा।
गर बन्द ना हुआ यूँ उजड़ने का सिलसिला।
सुखी होने का होने,
लगा अहसास था।
नौकरी,बीवी, बच्चे,
पैसा सब पास था।
तभी महामारी ने दिया सब मिट्टी में मिला।
सारे विश्व में है विपदा पड़ी
है युक्ति, संयम, धैर्य की घड़ी
तुम ना उधेड़ो मेरे ज़ख्म को
मुश्किल से वक़्त ने है जिसको सिला।
अब दिख रहा कितना
बड़ा सैलाब है।
सरकारों की नीतियों का
ये अज़ाब है।
कमलेश' क्यूँ हक़ इनका ना अब तक मिला।
कमलेश वर्मा 🌹कमलेश,🌹
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