मटक -मटक कर चलती है ,राह भटक कर चलती है ,
बस मन में इक उल्फत है ,बस वो मुझको छू जाये ...१
चाहे बदन छिल जाए ,सारे अरमां निकल जाएँ ,
अंज़ाम चाहे कैसा हो ,बस वो मुझको छू जाये ....२
खिल जायेगा मेरा चेहरा ,जब होगा उसके सर सेहरा ,
ज़रूर बजेगी शहनाई , बस वो मुझको छू जाये …. ३
कहे कुछ भी सोचे ज़माना ,उस ओर नहीं हमने जाना ,
मिल जायेगा दुनिया का खजाना ,बस वो मुझको छू जाये ....४
''कमलेश'' मेरी ये फितरत है ,किसी को क्यों नफरत है ,
चाहे कुछ भी हो जाये ..,बस वो मुझको को छु जाये।। .....५
बस मन में इक उल्फत है ,बस वो मुझको छू जाये ...१
चाहे बदन छिल जाए ,सारे अरमां निकल जाएँ ,
अंज़ाम चाहे कैसा हो ,बस वो मुझको छू जाये ....२
खिल जायेगा मेरा चेहरा ,जब होगा उसके सर सेहरा ,
ज़रूर बजेगी शहनाई , बस वो मुझको छू जाये …. ३
कहे कुछ भी सोचे ज़माना ,उस ओर नहीं हमने जाना ,
मिल जायेगा दुनिया का खजाना ,बस वो मुझको छू जाये ....४
''कमलेश'' मेरी ये फितरत है ,किसी को क्यों नफरत है ,
चाहे कुछ भी हो जाये ..,बस वो मुझको को छु जाये।। .....५
2 comments:
चाहे बदन छिल जाए ,चाहे अरमां निकल जाएँ ,
चाहे अंज़ाम कैसा हो ,बस वो मुझको छू जाये ....२
चाहे कुछ भी हो जाए ...बस वो मुझको छू जाये
latest post परिणय की ४0 वीं वर्षगाँठ !
बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुतिकरण,आभार।
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