टूटी साँस ,टूटी गांठ , लड़ी खुलकर बिखर गयी,
रिश्तों की ज़ंजीर की ,कड़ी खुलकर बिखर गयी।
वो क्या गयी !आसमां के भी रूप- रंग बदल गए ,
आँगन की चिड़ियों के ,खुद भी स्वरुप बदल गये।
हर इक को फिकर थी 'उसके' घर के घोंसले की ,
नही!नही! सबको जल्दी थी ,उसको ''नोचने'' की।
न किसी के दिल में शोक, न अवसाद ,भरा था ,
''क्या मिलेगा मुझको' मनों में यह मवाद भरा था।
जो मंजर नजर आया ,भविष्य सबका दिख गया ,
इतिहास दोहराएगा ? वक्त ये मन पर लिख गया।
''कमलेश' उसने मुश्किल से पाला, इन फरिश्तों[कहने में क्या हर्ज़ है] को ,
क्यों नही समझ सकी दुनिया ''उस'' गरीब के रिश्तों को।।''
रिश्तों की ज़ंजीर की ,कड़ी खुलकर बिखर गयी।
वो क्या गयी !आसमां के भी रूप- रंग बदल गए ,
आँगन की चिड़ियों के ,खुद भी स्वरुप बदल गये।
हर इक को फिकर थी 'उसके' घर के घोंसले की ,
नही!नही! सबको जल्दी थी ,उसको ''नोचने'' की।
न किसी के दिल में शोक, न अवसाद ,भरा था ,
''क्या मिलेगा मुझको' मनों में यह मवाद भरा था।
जो मंजर नजर आया ,भविष्य सबका दिख गया ,
इतिहास दोहराएगा ? वक्त ये मन पर लिख गया।
''कमलेश' उसने मुश्किल से पाला, इन फरिश्तों[कहने में क्या हर्ज़ है] को ,
क्यों नही समझ सकी दुनिया ''उस'' गरीब के रिश्तों को।।''
2 comments:
इतिहास दोहराएगा ? .....
उफ़...दुखद ..माँ और बेटे के रिश्ते से ऊपर कुछ नहीं ...आज भी
ये मैं अच्छे से समझ सकती हूँ
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