कैसे गले लगाओगे , इन आतंकवाद के सांपों को।
वीर जवानों का जो खून बहा, खुश करते हैं अपने बापों को।।
कब तक इनकी गद्दारी को ,देश हमारा झेलेगा,
दुश्मन इनके कंधो पर चढ़ ,खून की होली खेलेगा।।
मजाक बना डाला गद्दारों ने ,इतनी बड़ी आबादी का।
कत्लों गारत की साज़िश है ,ज़न्नत की बर्बादी का।।
नापाक मुल्क की साज़िश के ,ये गद्दार प्यादे हैं,
सबकी बात नहीं करते ,कुछ कम कुछ ज्यादे हैं।।
कश्मीर को कोई तोड़ सके ,किसी के बस की बात नहीं,
पाक परस्तों की छोड़ो ,दुनिया में किसी की औक़ात नहीं।।
श्मशान बना कर ज़न्नत को, मिल जाएगी इन्हें आज़ादी।
आज़ादी तो मिलने से रही,इनकी की होगी बर्बादी।।
विश्वास करो देश पर अपने,देश तुम्हारे साथ है,
प्रगति करो या रहो खड़े ये अब सब तुम्हारे हाथ है।।
बहुत दिनों तक ये प्रपंच, देश नहीं सह पायेगा।
कब तक हमारी घाटी में ,विदेशी ध्वज फहराएगा।
आतंकवाद के झंडे को गर कोई कहीं लहराएगा।
जिसके हाथ में गर दिख गया झंडा ,सीधा ऊपर जाएगा।
जिनको अपने देश,ध्वज का ,आता करना सम्मान नहीं।
कमलेश' ऐसे गद्दारों की ,है जगह श्मशान सही।।
💐कमलेश वर्मा 'कमलेश "💐
2 comments:
सच को बेबाकी से लिखा है ... देश के कुछ लोगों को सोचना होगा वो क्या कर रहे हैं क्यों कर रहे हैं ...
नापाक हरकतों को समजहना होगा ... देश को एक बनाए रखना होगा ...
लाजवाब छंद हैं सभी ...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (31-07-2018) को "सावन आया रे.... मस्ती लाया रे...." (चर्चा अंक-3049) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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