होता है आज भी दर्द ,उसी ठिकाने पर।
आया था दिल जिस दिन ,तेरे निशाने पर।।
टीश उठती है आह निकलती है ,होंठों से,
नहीं होने देते ज़ाहिर ,दर्दे दिल ज़माने पर।।
जब भी तेरी जुदाई के ज़ख़्म, रिसते हैं कभी,
सकून मिलता है यादों का ,मरहम लगाने पर।।
पूछते हैं सभी मेरा हाले-दिल ,अब कैसा है,
हंसते है सुनकर सब ,अच्छा है मेरे बताने पर।।
मैं कैसे बताऊं, नादान दुनिया वालों को अभी,
कितना मज़ा आता है मुझे,उसके सताने पर।।
कुछ लोग हैं जो अबतक,इससे अछूते हैं अभी,
'कमलेश' पछतायेंगे वो ,उम्र निकल जाने पर।।
1 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (30-03-2017) को "सन्नाटा पसरा गुलशन में" (चर्चा अंक-2925) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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