तेरे शहर के परिंदे भी बेवफ़ा निकले
तुम तो निकले पर ये बे वजह निकले।।
छोड़ दी हमने तेरे मुहल्ले की वो गली,
ये तुम्हारे खैरख्वाह हर जगह निकले।।
बड़ा सकून था तेरी यादों के महल में
हर तरफ सहरा ही मिला जहां निकले।।
देख कर चल दिए ज़मीं पर पैरों के निशां
दस्तक सुनी दिल ने तो तुम यहां निकले।।
'कमलेश' तम्मना रही अधूरी की अधूरी मेरी,
जान तो निकली मगर अरमां कहां निकले।।
कमलेश वर्मा, कमलेश🌹7/2020
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपके स्नेहपूर्ण शब्द मेरा मार्ग दर्शन करते हैं..