आज की स्वरचित रचना आप सब के लिए🌹😍🦋❤️
शतरंज की ये बाज़ी,
ना हम पर लगाइए।
क्या कर रहे हैं आप❓
अब देश को बताईये।
चल रही हैं ट्रेन,बसें,
ऑटो बे शुमार तो
ये सड़कों पर कौन है,
जरा समझाइये❓
स्टेशनों,बस अड्डों पर खड़ा
इतना बड़ा हजूम है,
हज़ूर हमको/सबको भी,
हमारे घर पहुंचाइये।
हो सकता किसी नज़र में हों,
हम वोट की फसल ,
खूब काट लेना फिर कभी!
पहले हमें बचाइये।
महामारी से तो हो सकता है,
बच जाएंगे हम,
सरकार,मजबूर,मजदूर को,अब
ना मुद्दा बनाइये।
क्यों ? नज़र नहीं आता दर्द,
किसी रक़ीब को,
'कमलेश' ज़ख्मों पर कोई तो,
मरहम प्यार का लगाइए।
कमलेश वर्मा 'कमलेश🌹
#labourmigration
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें