कहूँ मै क्या ?दिल उदास है ,
न कोई ऐसी बात न मौका खास है ।
कोने में कहीं दिल के किसी ,
इक उलझा -उलझा सा अहसास है ।
किसे समझूं यहाँ अपना ,
तोड़ देता हर कोई विश्वाश है ।
कसम से न पड़ता इस अजाब में ,
हो गया सकूने -दिल का नाश है ।
फ़िर भी शुक्र है खुदा का ,
टुकडा टूटे दिल का मेरे पास है ।
'कमलेश' मिल जाएगा ही कोई,
अपना कोई न कोई हमराह है ॥
4 comments:
कसम से न पड़ता इस अजाब में ,
हो गया सकूने -दिल का नाश है
bahut sundar !!
फ़िर भी शुक्र है खुदा का ,
टुकडा टूटे दिल का मेरे पास है ।
शुक्र है अवशेष तो शेष है
बहुत सुन्दर रचना
अच्छी रचना। क्या करे यहाँ भी दिल उदास है।
nice.........nice....................nie...................
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