- थी चांदनी तारों के आगोश में ,देख!चाँद जल गया !
- जलन भी थी इतनी तेज, सूरज भी पिघल गया !
- तपिस तेरे मेरे प्यार की, पहुंच गयी कूंचों तक !
- बारास्ता जो भी गुजरा इधर से ,वो भी मचल गया !
- ऐसा नही की विरानियाँ ही हैं, इस राहे-गुजर में ,
- जो भी आया दर-ए-इश्क में ,गाता ग़ज़ल गया !
- यहाँ इतनी आसां नही होती ,राहें चाहत की ,
- कुछ तो सीधे चलते चले गये ,कोई फिसल गया !
- 'कमलेश'शुक्रिया कैसे अदा करुँ मै उसका ,
- जिसके प्यार के सहारे ,आखिर सम्भल गया !!
जलन -यह -कैसी -जलन ..!!!
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
8 comments:
बहुत सुन्दर वाह
हर बार की तरह ....बहुत सुंदर ग़ज़ल...
यहाँ इतनी आसां नही होती ,राहें चाहत की ,
कुछ तो सीधे चलते चले गये ,कोई फिसल गया !
जो फिसल गये वे भी कहाँ संभलते हैं
सुन्दर रचना
वाह बहुत ही सुन्दर गज़ल्।
थी चांदनी तारों के आगोश में ,देख!चाँद जल गया !
जलन भी थी इतनी तेज, सूरज भी पिघल गया !
बहुत खूब....बढ़िया गज़ल...
बहुत सुन्दर गजल है।बधाई।
अद्भुत लिखा है कमलेश वर्मा जी।
आपने बड़े ख़ूबसूरत ख़यालों से सजा कर एक निहायत उम्दा ग़ज़ल लिखी है।
एक टिप्पणी भेजें