29/3/18
कोई यूं ही नहीं बिछुड़ता ,
कोई राज़ रहा होगा,
शिकवा कल का कोई होगा ,
कोई आज रहा होगा।
हमको नहीं जररूत
होगी शायद मेरी ज़माने को
जाते हुए उसका यही ,
अंदाज़ रहा होगा।
आबे हवा को रास्ता
बताना फिज़ूल है,
इनकी तरह भी उसका
तस्स्वुर बेपरवाह रहा होगा।।
नश्तर की तरह चुभती हैं 'कमलेश'
वो अठखेलियाँ
जिसको हैं ये बताई बातें
वो हमदम, हमराज़ रहा होगा।।
@ कमलेश वर्मा 'कमलेश'
3 comments:
बहुत ख़ूब ...
सच में कुछ शिकवे शिकायतें होती हैं जो भूलना मुश्किल हो जाता है ... बहुत भावपूर्ण रचना है ...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (31-03-2017) को "दर्पण में तसबीर" (चर्चा अंक-2926) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, लायक बेटे की होशियारी “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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