जब निकले तेरी गली से
दिल में ख्याल आया।
आता था कभी नज़र
चाँद के टुकड़े का साया ।।
बरबस नजरें अब भी
ढूंढती है तुमको
पर वीरान सी खिड़की
को बन्द पाया।
मन में कहीं अब भी
बाकी है तेरी चाहत
बन्द खिड़की में
दिखती है तेरी छाया।।
भूल जाने की तेरी ज़िद ने
तोड़ दी ज़िंदगी
जी कर भी अपनी ना ,
ज़िन्दगी जी पाया।।
उम्मीद की लकीरें हमने
खींच रखीं है रेत पर
पर ज़माने की हवाओं को
ना कोई रोक पाया।।
कमलेश" कितनी छा जाये ,
धुंध वक़्त की
मुझको तो तू नज़र आई
,चाहे था तेरा साया।।
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