क्या छायेगा वीतराग इस ,जीवन के कुहासों में।
नव जीवन संचरित हुआ है प्रकृति की सासों में।
नव कलियों में जागी ,इक जीवन की जिगियाषा ।
स्वयं उदेलित है लिखना ,चाहे अपनी परिभाषा।
नही भविष्य के प्रतिकूलन ,सम्भावी है उत्तर में।
क्या गर्भ में छुपा हुआ है ,समय के प्रतिउत्तर में।
जब होगा प्रतिपादन खत्म ,उस अजर ईश्वर का।
निरूत्तर 'कमलेश' करे क्या , उस सर्वोपरि का।।
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