वह मंज़र तुम्हे याद है, अपने ज़ुनून का,
महंगा सौदा था किया, अपने सकून का।
अंजामों से बे-परवाह ,तेरी मुहब्ब्त में ,
बदल गया 'सबब' ,ज़िंदगी के मज़मून का।
कहाँ कमी रह गयी हमसे ,अपनी मुहब्ब्त में,
कैसे ? बदल गया रंग इश्के-ज़िगर के खून का।
तेरी शक्लो-सीरत का ये दिल तलबगार है,
नहीं कोई असर नूरानी , चेहरों के हज़ूम का।
''कमलेश' नहीं मलाल ,उस कीमत की मुझे ,
जो चुकाई हमने , वो मेरा दिले-सकून था. ....
महंगा सौदा था किया, अपने सकून का।
अंजामों से बे-परवाह ,तेरी मुहब्ब्त में ,
बदल गया 'सबब' ,ज़िंदगी के मज़मून का।
कहाँ कमी रह गयी हमसे ,अपनी मुहब्ब्त में,
कैसे ? बदल गया रंग इश्के-ज़िगर के खून का।
तेरी शक्लो-सीरत का ये दिल तलबगार है,
नहीं कोई असर नूरानी , चेहरों के हज़ूम का।
''कमलेश' नहीं मलाल ,उस कीमत की मुझे ,
जो चुकाई हमने , वो मेरा दिले-सकून था. ....
1 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (19-12-13) को टेस्ट - दिल्ली और जोहांसबर्ग का ( चर्चा - 1466 ) में "मयंक का कोना" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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